मध्यप्रदेश में आदिवासी विकास परिषद के संस्थापक अध्यक्ष एवं आदिवासियों के मसीहा कहे जाने वाले आदिवासियों के नेता डॉ. भंवर सिंह पोर्ते को कौन नहीं जानता?
दीपक मरकाम की रिपोर्ट,,,,,,,,
छत्तीस गढ़,,,,,,
आदिवासियों के उत्थान एवं आदिवासी कल्याण के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित कर देने वाले डॉक्टर भंवर सिंह पोर्ते का जन्म अविभाजित मध्य प्रदेश के ग्राम बदरौड़ी में १ सितंबर १९४३ को एक आदिवासी परिवार में हुआ था। ग्रामीण परिवेश में पले-बढ़े भंवर सिंह पोर्ते को गांव के बड़े बुजुर्ग भंवर के नाम से संबोधित करते थे। उनकी प्रारंभिक शिक्षा बदरौड़ी से लगे ग्राम सिवनी में हुई। भंवर सिंह पोर्ते बाल्यकाल से ही कुशाग्र बुद्धि के थे तथा कम उम्र से ही उनमें नेतृत्व की क्षमता बाहर चमकने लगी थी। पेंड्रा के शासकीय बहु उच्चतर माध्यमिक शाला पेंड्रा से हायर सेकेंडरी की पढ़ाई पूरी करने के बाद भंवरसिंह पोर्ते ने उच्च शिक्षा के लिए रायपुर स्थित साइंस कॉलेज में प्रवेश लिया।
डॉ. भंवर सिंह पोर्ते ने उच्च शिक्षा के लिए भले ही महाविद्यालय में प्रवेश ले लिया था, परंतु जिस गरीबी पिछड़ेपन के वातावरण में उन्होंने अपना बचपन अपने गांव बदरौड़ी में बिताया था उसे वे भुला नहीं पाते थे, शायद यही कारण रहा कि वह आदिवासियों के उत्थान एवं उन्हें जागरूक बनाने के अभियान में जुट गए। स्वभाव से ही मिलनसार मृदुभाषी भंवर सिंह पोर्ते साइकिल से गांव गांव जाकर ग्रामीण-आदिवासी युवकों को जोड़ने का काम किया। अपनी सहज ग्रामीण शैली एवं नेतृत्व क्षमता के कारण भंवरसिंह पोर्ते जल्दी ही गांव-गांव में लोकप्रिय हो गए, इसी बीच उन्होंने चिकित्सा की पढ़ाई के लिए रीवा मेडिकल कॉलेज में प्रवेश लिया। उनकी चिकित्सा की पढ़ाई चल रही थी कि ग्राम सिवनी में घटित एक छोटी सी घटना ने उनके जीवन की दिशा ही बदल दी, और वे चिकित्सा की पढ़ाई करते हुए आदिवासियों के शोषण के खिलाफ संघर्षरत हो गए। दरअसल यह समय की मांग थी, उन दिनों आदिवासी इलाकों में शोषण अत्याचार चरम पर था आदिवासी समाज बिखरा हुआ था, नेतृत्व के अभाव में आदिवासी समाज शोषित तो था ही उन्हें दिशा देने वाला भी कोई नहीं था। भंवर सिंह पोर्ते ने अपने साथियों के साथ मिलकर आदिवासी समाज के हित में आंदोलन खड़ा किया। उन्होंने आदिवासी किसानों की हड़पी हुई जमीने वापस दिलाई तथा उन्हें सम्मानजनक जीवन जीने की ललक पैदा की। इस कार्य के बाद भंवर सिंह पोर्ते दृढ़ इच्छाशक्ति के साथ सार्वजनिक जीवन अपनाते हुए आदिवासी समाज की सेवा में जुट गए। समय ने करवट बदली और सक्रिय राजनीति में कूद पड़े श्री पोर्ते का पूरा जीवन काल आदिवासियों की सेवा में गुज़रा। उन्होंने सुदूर वनांचलों में स्थित आदिवासियों को गरीबी, अशिक्षा एवं शोषण से मुक्ति दिलाने के साथ शासन की विकास योजनाओं के माध्यम से उन्हें विकास की मुख्यधारा से जोड़ने का काम किया ।