*नवाखाई (एक पारंपरिक उत्सव….पढ़े पूरी खबर…… मनीष कौशिक की रिपोर्ट*

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*नवाखाई (एक पारंपरिक उत्सव)*
-दुर्गुकोंडल 4 सितंबर 2022
भाद्रपद के नवमी तिथि को खेती-किसानी से जुड़े लोग नवाखाई का पर्व बड़े धूमधाम से मनाते हैं। बस्तर की आदिम जनजातियों में से एक हल्बा जनजाति का यह प्रमुख पारंपरिक लोक त्यौहार है। खेतों में लहलहाती धान की नई फसल में बालियों के आने की खुशी के इजहार के रूप में तथा उस नई फसल को अपने ईष्ट देवी-देवताओं को अर्पण करने के प्रतीकात्मक नवाखाई उत्सव को इस जनजाति के लोग हर्षोल्लास से मनाते हैं। इस दिन ये अपने ईष्टदेवों को भोग के रूप में नई फसल का अर्पण करते हैं। उन पर धान की बालियों को चढ़ाते हैं,और दूध का चढ़ावा भी चढ़ाया जाता है। जनजातीय स्त्रियों व पुरूषों के द्वारा देवगुड़ी में स्थित देवी-देवताओं की सेवा-अर्जी की जाती है। इस अवसर पर धान की नई फसल के अन्न से तैयार की गई गोना भात (तसमई या खीर) को पहले ईष्टदेवों पर चढ़ाते हैं फिर माता-पितर यानि माईघर में बैठकर सपरिवार मिल-जुलकर खाते हैं। नवा खाने के बाद वे आपस में मिल-भेंटकर एक-दूसरे को नवाखाई की बधाई देते हैं। समुदाय की स्त्रियों व पुरूषों के द्वारा नवाखाई उत्सवगान किया जाता है। इसके दूसरे दिन अन्य जनजातीय बिरादर संयुक्त रूप से एकत्रित होकर ग्राम गायता के घर पहुँचकर ठाकुर जोहरनी का रस्म अदा करते हैं।
*कोरिया या कुड़ई पत्ता का महत्व*
आदिम परंपरानुसार,हल्बा समुदाय में आदिकाल से ही नवाखाई उत्सव के दौरान नई फसल से बनी पकवान को एक औषधीय पौधा ‘कोरिया’ या ‘कुड़ई’ के पत्ते से परोसकर खाने की परंपरा है। खिचड़ी या खीर को प्रसाद के रूप में ग्रहण करने के बाद जूठन पत्तल को जमीन में गाड़ दिया जाता है। माना जाता है कि वर्ष में एक बार इस औषधीय पत्ता से भोजन या अन्य पकवान ग्रहण करने पर कई शारीरिक व्याधियाँ खत्म हो जाती हैं। आदिकाल से ही हल्बा समुदाय के लोग कोरिया पत्ता के महत्व को समझकर इसका उपयोग करते आये हैं। दस्त,पेचिश, खाँसी, पथरी, मसूड़ों से जुड़ी गंभीर बीमारियों के इलाज में यह गुणकारी होता है।

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