* भगवान स्वामी अय्यप्पा मेटला पूजा ,बड़े ही भक्ति श्रद्धा से किया गया*,,,,,,,,,,,,,,,*भोपाल पटनम से मुर्गेश शेट्टी की रिपोर्ट*

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* भगवान स्वामी अय्यप्पा मेटला पूजा ,बड़े ही भक्ति श्रद्धा से किया गया*,,,,,,,,,,,,,,,*भोपाल पटनम से मुर्गेश शेट्टी की रिपोर्ट*

भोपालपटनम ::::::::छत्तीसगढ़ राज्य अंतिम जिला बीजापुर का अंतिम तहसील भोपालपटनम का क्षेत्र महाराष्ट्र एवं तेलंगाना सीमाओं से लगा हुआ है। जिससे इस तहसील में दोनों ही राज्यों से रोटी बेटी का रिश्ता बना हुआ है। इसलिए यहां दोनों राज्यों की संस्कृति कही न कही से झलकती नजर आती है ।

वैसे ही एक धार्मिक आस्था का नजारा स्वामी अय्यप्पा माला धारण का है, यह माला धारक दक्षिण भारत के तेलंगाना आंध्र प्रदेश केरल कर्नाटक आदि राज्यों में बहुत प्रचलित है।

यह अय्यप्पा मंदिर मंदिर दक्षिण भारत के केरल राज्य के पथनाथिटा जिले में 18 फड़ियो के बीच बसा है।

स्वामी अय्यप्पा का जन्म मोहिनी अवतार विष्णु और शिव के समागम से हुआ है।

इसलिए इनको हरिहरा पुत्र मणिकांठा और सास्ता के नाम से भी पुकारा जाता है।

यह भी माना जाता है कि भगवान परशुराम ने अय्यप्पा पूजा के लिए शबरीमाला में मूर्ति स्थापित किया है।

अय्यप्पा माला कार्तिक मास शीत ऋतु में धारण किया जाता है।

यह व्रत 41 दिन पूर्ण रूप से ब्रह्मचारी व्रत है ।

यह माला धारण रुद्राक्ष य तुलसी का माला को गुरु स्वामी के द्वारा पूजा अर्चना कर मंत्रोच्चारण के द्वारा धारण किया जाता है।

माला धारण के बाद यह व्यक्ति को पूर्णरूपेण भगवान अय्यप्पा का स्वरूप माना जाता है।

रोज सुबह ब्रह्म मुहूर्त 4:00 से 4:30 बजे उठकर ठंडे पानी से स्नान आदि कर विभूदि चंदन कुंकुम से अलंकरण कर पूजा अनुष्ठान किया जाता है ।

पूजा के उपरांत सुबह सात्विक भोजन और शाम को पूजा के उपरांत स्वल्पाहार किया जाता है ।

पूरे 41 दिन काला वस्त्र धारण कर बिना चरण पादुका के चलना पड़ता है।

जिसे विज्ञान की दृष्टि से देखा जाए तो शरीर के बहुत से फायदे होते हैं सुबह उठना ठंडे पानी से स्नान आदि करना से शरीर से ऊष्मा निकल जाता है ।

41 दिन नीचे शयन करने से शरीर के अंगों व हड्डियों में संतुलन बनाए रहता है।

समय के अनुसार सात्विक भोजन करने से भी शरीर में बहुत से फायदे होते हैं।

स्वामी अय्यप्पा अलंकरण एवं अभिषेक शरण घोष प्रिय भगवान है,शरण घोष अर्थात उनका कई नामों का स्मरण करना होता है।

41 दिनों के व्रत के बाद माता पिता एवम गुरुस्वामी के हाथो के द्वारा इरमुडी में बंधकर अपने सिर पर लेकर स्वामी अय्यप्पा का नाम स्मरण करते हुए शबरी मलाय की यात्रा की जाती है।

मान्यता है कि जिस स्वामी के सर पर इर मुंडी रहता है। वह सोने का 18 सीढ़िया चढ़कर भगवान अय्यप्पा का साक्षात दर्शन कर सकते हैं ,और किसी अन्य को यह स्थान नही मिलता है।

भगवान अय्यप्पा का इस्ट प्रसाद अरुअन्नम है।

भगवान अय्यप्पा मेटला पूजा और अभिषेक प्रिय हैं, इन दिनों या क्षेत्र में बड़े ही भक्ति श्रद्धा के साथ जगह जगह स्वामी जी का मेटला पूजा बड़े ही भक्ति श्रद्धा से किया जा रहा है।

यह पूजा रात के समय होने के कारण तरह तरह के फूलों की सजावट और टिमटिमाती रोशनी से अति शोभायमान लगता है।

श्रद्धालु भक्ति भाव से पूजा में सम्मिलित होकर भगवान का दर्शन कर प्रसाद ग्रहण करते हैं।

शबरी मलय के कांतमालय पर्वत पर मकर क्रांति के दिन शाम को सभी भक्तो को स्वामी अय्यप्पा मकर ज्योति के रूप में दर्शन देते हैं।

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