प्रकृति की गोद में बसा ग्राम पंचायत लंकापल्ली अपने आदिवासी संस्कृति को सहेजे आई,,,
,,,,,,तेजनारायण सिंह की रिपोर्ट,,,,,,
बीजापुर विकासखण्ड उसूर का मुख्यालय आवापल्ली से इलमिड़ी जाने वाली सड़क में 15 किलामीटर दूरी पर स्थित ग्राम पंचायत लंकापल्ली स्थित है। शत्प्रतिशत अनुसुचित जनजाति वाले ग्राम पंचायत लंकापल्ली की कुल जनसंख्या 1446 है, जिसमें से पुरूष 699 एवं 747 महिलाएं शामिल हैं। बारिश के दिनों में पहाड़ियों से बहते छोटे-छोटे झरने इस पंचायत की प्राकृतिक सौंर्दयता को बढ़ाते हैं। इस ग्राम पंचायत में पहाड़ियों से बहने वाली प्रसिद्ध लंकापल्ली झरना पर्यटकों के लिए आकर्षण का केन्द्र है, जिसे स्थानीय बोली में ग्रामीण ‘बोग्तुम‘ कहते हैं। बारिश के मौसम में पूरे जिले से पर्यटक इसे देखने व अपना कुछ समय प्राकृतिक सुन्दरता के बीच बिताने यहां आते हैं।
ग्राम पंचायत की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि- इस ग्राम पंचायत के आश्रित ग्राम जिनप्पा, आईपेन्टा, लंकापल्ली छोटी नदी व नालों के किनारे बसा है। ग्राम पंचायत लंकापल्ली अपनी आदिवासी संस्कृति और परम्पराओं के चलते एक ऐतिहासिक महत्व रखता है। जनजाति बाहुल्य इस ग्राम पंचायत में आदिवासी परिवारों में प्रकृति के प्रति विशेष लगाव देखने को मिलता है। संभवतः इसीलिए अधिकांश जनसंख्या वनसंपम्पदा और कृषि पर ही निर्भर है। इस क्षेत्र की भमि की उर्वरक क्षमता अधिक होने के कारण कृषि के लिए योग्य है।
ग्राम की सामाजिक व पारिवारिक स्थिति- ग्राम पंचायत लंकापल्ली में कुल 335 परिवार हैं, जिसमें से कुल 211 परिवार के पास अपनी स्वयं की कृषि भूमि है, ग्राम पंचायत के कुल 335 परिवार में से 299 परिवार के आजीविका का मुख्य साधन कृषि कार्य है, शेष 36 परिवार श्रम कार्यो पर निर्भर हैं। इस ग्राम पंचायत की साक्षरता दर 90 प्रतिशत है। इस ग्राम पंचायत में मुख्यतः दोरला, हल्बा, मुरिया और जनजाति के लोग निवास करते हैं। बीजापुर जिला तेलंगाना और महाराष्ट्र की सीमावर्ती जिला है। इसलिए यहां के रहन-सहन में तेलगु व मराठी संस्कृति की छाप भी दिखाई देती है। ग्राम पंचायत लंकापल्ली भी इस मायने में अछूता नहीं है। पास के सीमावर्ती राज्यों से शादी व्याह के साथ मौसमी रोजगार के लिए ग्रामीण पूर्व से आंध्रप्रदेश, तेलंगाना और महाराष्ट्र आते-जाते रहे हैं।
ग्राम पंचायत में योजना के अंतर्गत संपादित कार्याें का विवरण – बीजापुर जिले के अधिकांश क्षेत्रों में कृषि प्राकृतिक जल-स्त्रोतों पर ही आधारित है। विकास के चरणों में जल संग्रहण और संरक्षण से संबंधित संरचनाएं महत्तवपूर्ण होती हैं। यह गिरते हुए भू-जल स्तर में संतुलन बनाने में भी सहायक सिद्ध होती हैं। जिला बीजापुर की ग्राम पंचायत लंकापल्ली के ग्रामीणों ने ऐसी ही एक अनोखी पहल की है, जिसने इस ग्राम पंचायत को एक अलग पहचान दिलाई है। जिले के उसूर विकासखंड की ग्राम पंचायत लंकापल्ली में भी पहाड़ों से सालभर बहते छोटे-छोटे जल-स्त्रोत ही खेतों की सिंचाई के मुख्य साधन है। यह जल-स्त्रोत एक ओर किसानों के लिए वरदान हैं, तो बारिश के समय दिशाहीन एवं तेज प्रवाह के कारण अभिशाप भी बन जाता है। ग्रामीणों केे मन में इस स्थिति को बदलने की तीव्र इच्छा थी। गांव की इस समस्या पर ग्रामीणों ने अपनी सूझबूझ, आपसी सामंजस्य और मेहनत के बलबूते पर काबू पा लिया है। इनकी सोच को आधार मिला महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना से। ग्राम पंचायत लंकापल्ली में वित्तीय वर्ष 2019-20 में महात्मा गांधी नरेगा योजनांतर्गत कुल 6 नग कच्ची नाली केनाल निर्माण कार्य कर पहाड़ों से आने वाली दिशाहीन जल-धारा को ग्रामीणों ने दिशा दे दी है। पानी के बहाव की गति को कम करने के लिए कुल 6 नग बोल्डर चेक डेम का भी निर्माण किया गया है।
पहाड़ियों के निचले भाग में अलग-अलग स्थानों में कुल 3 नग तालाब जैसी जल संरक्षण की संरचनाओं का निर्माण कर अनुपयोगी समझी जाने वाली भूमि को उपयोगी बनाकर क्षेत्र में गिरते भू-जल स्तर को नियंत्रित करने का माध्यम बना लिया है। वहीं कुल 6 किसानों के खेतों में डबरी कहे जाने वाले छोटे तालाब का निर्माण किया गया है। जिससे अनावश्यक रूप से बह जाने वाले पानी को एकत्रित कर आवश्यकता पड़ने पर खेतों की सिंचाई के अलावा मत्स्य पालन के लिए उपयोग किया जा रहा है।
उल्लेखनीय कार्य और उनका ग्राम पर प्रभाव- पहाड़ियों से तेज गति से बहने वाली जल धाराओं की गति को बोल्डर चेकडेम के माध्यम से कम किया गया है। दिशाहीन जल-धारा की गति को कम करने के उपरंात कच्ची मिट्टी के केनाल निर्माण कार्य कर दिशा दी गई है। पानी का संरक्षण आवश्यक है। यह बात को समझते हुए ग्राम पंचायत लंकापल्ली में निचले स्तर पर तालाब निर्माण कर जल का संरक्षण किया जा रहा है। किसानों के खेतों में डबरी निर्माण कर बारिश के पानी को एकत्रित किया जा रहा है। जल संरक्षण संरचनाओं की मदद से इस ग्राम पंचायत में वर्षा जल के प्रबंधन में एक महत्तवपूर्ण कदम उठाया है।
अवधारणा, तकनीक, नवाचार- ग्राम पंचायत लंकापल्ली पहाड़ियों के बीच में बसा है, इसलिए यहां की जमीन समतल न होकर उबड़-खाबड़ है। वर्षा के दौरान जमीन का कटाव, पानी की कमी खेती की अनिश्चितता हमेशा बनी रहती थी। जल संरक्षण की तकनीक ‘रिज टू वैली‘ विधि की अवधारणा पर इस ग्राम पंचायत में कार्य किए गए हैं। विकासखंड स्तर के प्रशिक्षित तकनीकी अमलों के मार्गदर्शन में जलग्रहण की वैज्ञानिक और तकनीकी बारिकियों के बदौलत इन संरचनाओं का निर्माण किया गया है।
अवधारणा, आम लोगों की- गांव में निवास करने वाले ग्रामीण व बुजुर्ग अपने गांव की भौगोलिक स्थिति से भली-भांति परिचित होते हैं। अपने अनुभव के आधार पर जल बहाव की दिशा व उसके प्रबंधन के उपाय भी समझते हैं। ग्रामीण विकास की अवधारणा के अनुरूप ग्राम विकास की योजनाओं में ग्रामीणों की भागीदारी आवश्यक है। इसलिए प्रत्येक कार्यों के लिए ग्रामीणों की भागीदारी व उनके अभिमत के आधार पर कच्ची केनाल बनाने की योजना को मूर्तरूप दिया गया। जिसका परिणाम यह हुआ कि ग्रामीण इस कार्य में बढ़़-चढ़़कर हिस्सा लिए।
सफलता के प्रमुख नायक – ग्राम पंचायत लंकापल्ली के रोजगार सहायक विकास मोरला बताते हैं कि महात्मा गांधी नरेगा से जब केनाल निर्माण का कार्य शुरू हुआ तो गांव में उत्सव जैसा माहौल था। मैंने पहली बार किसी शासकीय कार्य में ग्रामीणों का इतना जुड़ाव देखा था। ऐसा इसलिए भी था, क्योंकि यह कार्य उनके आजीविका व खेती की समस्याओं से सीधा जुड़ा हुआ था।
प्रभाव- केनाल के माध्यम से जल-धारा को दिशा तो दी गई है साथ ही आवश्यकता पड़ने पर सुव्यस्थित सिंचाई साधन के रूप में इसका उपयोग भी किया जा रहा है। वहीं तालाबों में बारिश के पानी व अनावश्यक बह जाने वाली पानी को एकत्रित कर इस पानी को लंबे समय तक कृषि व अन्य निस्तारी कार्यो के लिये भी उपयोग के लायक बनाया गया। इस कार्य की बदौलत भू-तल स्तर में भी सुधार हुआ है। बोल्डर चेकडेम एवं केनाल बन जाने के कारण गांव में भूमि कटाव जैसी समस्या से भी किसानों को निजात मिली है। यहां कार्य इसलिये और भी महत्वपूर्ण हो जाता है, चुंकि प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन के कार्यो की बदौलत गांव की आबो-हवा बदल रही है।
अन्य उल्लेखनीय तथ्य- जल पर्याप्त मात्रा में संग्रहण होने के कारण ग्राम पंचायत क्षेत्र में वन्य -जीव जैसे तोते, हिरण, जंगली-सुअर, सांभर, इत्यादि के संरक्षण में भी बहूतायत मदद मिली है। ग्रामीण बताते हैं पहले इनके आने की संख्या क्षेत्र में कम थी किंतु ये जीव-जंतु अब प्रायः देखे जाते हैं। वही दूसरी और केनाल के माध्यम से सुव्यस्थित सिंचाई के कारण किसानांें के पैदावार में बढ़ोत्तरी हुई, लंबे समय तक तालाबों और निजी डबरियों में पानी का संग्रहण होने के चलते इस पानी का उपयोग किसान सब्जी-भाजी, बाड़ी लगाकर अपनी अजीविका मजबूत कर रहे हैं।
किसान श्री रामलू मोड़ि़यम ने बताया कि उसने अपने खेत में महात्मा गांधी नरेगा योजना अंतर्गत डबरी का निर्माण किया है, जिसमें केनाल के माध्यम से बारिश के पानी को डबरी में एकत्रित किया जाता है। एकत्रित पानी का उपयोग मैं अपने खेतों की सिंचाई में करता हूँ एवं दोहरे फसल के रूप में साग-सब्जी का भी उत्पादन करता हूं,। खरीफ फसल के रूप में मैंने धान से कुल 1.50 लाख रूपये का मुनाफा कमाया है, एवं सब्जियों से अतिरिक्त आमदनी के रूप में 300 से 400.00 रूपये प्रतिदिन हो जाती है। महात्मा गांधी नरेगा से बनी डबरी में 05 किलो बीज डाला था, जिससे मुझे 60 हजार रूपये की आमदनी हुई। अभी वर्तमान में अपनी डबरी में कुल 10 किलो मछली बीज डाला हूं।
इन्हीं की तरह अन्य किसान जैसे गोपाल मडी, चितम्म, किस्टैया, सोडी कन्ना ने भी डबरी में मछली के बीज डाल कर जीविकापार्जन के साधन को अपनाया है। ग्राम पंचायत लंकापल्ली पहाड़ों से घिरे होने के कारण अपने प्राकृतिक सौदर्यंता के लिये विशेष महत्व रखता है। यहां से बहते हुये झरने नदी-नाले, एकाएक अनुपम दृश्य प्रस्तुत करते एवं मन मोह लेते हैं। यहां का प्रसिद्ध लंकापल्ली (बोग्तुम) झरना पर्यटन के लिये आकर्षण का केन्द्र है। प्राकृतिक सुन्दरता के बीच बसा ये गांव अपने आदिवासी संस्कृति को सहेजे हुए है। किन्तु जिसके अंतर्गत कच्ची केनाल बोल्डर चेकडेम, डबरी, तालाब निर्माण कार्य कर जल के बहाव को सुव्यस्थित व संग्रहण कर इस ग्राम पंचायत ने जल के संग्रहण का अनूठी पहल की है।