*बस्तर का एक गाँव जहां दिवाली पर लगता है मेला लेकिन रोशनी के लिए दिए नहीं जलाए जाते, जानिए क्या है ये खास परम्परा? *
*दीपक मरकाम की रिपोर्ट*
दक्षिण बस्तर ,दंतेवाड़ा :::::छत्तीसगढ़ के बस्तर के दंतेवाड़ा के गांव में दीपावली का पर्व अनोखे तरीके से मनाया जाता है।
यहां दीपावली के साथ-साथ दियारी का त्यौहार मनाया जाता है, क्या है इसमें खास बात यही सोच रहे, तो आईए बताते हैं – इस दियारी के त्यौहार में आतिशबाजी तो बहुत की जाती है, लेकिन दीए यानि दीपक नहीं जलाए जाते हैं।
अब आप सोचो ये क्या भाई दिपावाली पर दिए नहीं जलाएंगे तो ये कैसी दिपावाली?
छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा जिले के धर्म नगरी बारसूर के घोटपाल गांव में ग्रामीण”दिपावली” दियारी के दिन देवी देवताओं की पूजा करके उन्हें बकरे और मुर्गे की बलि चढ़ाकर धूमधाम से पर्व को मनाते हैं ।
इसके साथ ही इस पर्व के मौके पर गांव में 2 दिनों तक मेला भी लगता है ।
“दिपावली” दियारी पर्व के दौरान 2 दिनों तक चलने वाले इस ‘घोटपाल मड़ई मेला’ में बस्तर के कई गांव से आदिवासी अपने पारिवार के साथ पहुंचते है और मेले से अपनी जरूरतों का सामान खरीदते है।
साथ ही “दिपावली” दियारी के दिन गांव के युवक और युवतियां शाम होने के साथ ही देवी-देवताओं का पूजा पाठ करते है और जमकर आतिशबाजी करते हैं. लेकिन घरों में दीए नहीं जलाए जाते हैं।
घोटपाल के स्थानीय लोगों का ऐसा कहना है कि पिछले कई सालों से गांव में “दिपावली “दियारी त्यौहार के दौरान इसी परंपरा के तहत पर्व मनाया जाता है।
बाकायदा””दिपावली” दियारी के दिन गांव में देवी-देवताओं के लिए पूजा-पाठ किया जाता है और गांव के युवक और युवतियां मादल के थाप के साथ नाचने में जुट जाते है।
बांस के लट्ठे पर मोर पंख और घंटिया बांधकर देवी-देवताओं की स्थापना की जाती है, फिर उन्हें स्नान कराने के बाद उन्हें मंदिर में लाया जाता है. स्थानीय बोली में देवता के छत्र और लट्ठे को लाट कहते हैं।
मोरपंख और घंटियों से बंधे छोटे लाट की भी पूजा आराधना की जाती है।
सभी गांव के ग्रामीणों के द्वारा देवी- देवताओं से अपनी अपनी मन्नते मांगी जाती है, और उसके बाद मुर्गे, बकरे की बलि दी जाती है, ग्रामीणों ने बताया कि पुरखों से घोटपाल में दियारी पर्व के दौरान यह परंपरा चली आ रही है और आज भी यह कायम है।
इसलिए घोटपाल गांव में दिपावली “”दियारी “का त्यौहार खास होता है और साल भर इस त्यौहार का इंतजार इस गांव के ग्रामीण और आसपास गांव के ग्रामीण करते हैं ।