माँ दुर्गा नवरात्री ,बतकम्मा पर्व भक्तिमय वातावरण व हर्षोउल्लास के साथ मनाया जा रहा है ,,,,,,,,,,,, भोपाल पटनम से जर खान की रिपोर्ट,,,,,,,,,,*
भोपाल पटनम :::::: नगर एवं समूचे भोपाल पटनम के पूरे ब्लाक में शारदीय नवरात्रि एव बतकम्म का पर्व बड़े ही भक्ति श्रद्धा हर्षोउल्लास के साथ मनाया जा रहा है।
नगर के वृदय स्थल क्लब प्रांगण के पण्डाल में झालर, टिमटिमाती रोशनी के साथ पण्डाल को साज सज्जा कर माँ दुर्गा जी का मूर्ति स्थापना कर पण्डित जी के द्वारा रोज सुबह शाम विधि विधान के साथ पूजा अर्चना किया जाता है।
शाम होते ही भक्तों का भीड़ लगा रहता है।
बहुत से श्रद्धालु 9 दिनों तक माँ दुर्गा जी का श्रध्दा व निष्ठा के साथ उपवास करते है।
नगर के भक्तगण माता बहनों के कामना की मनोकामना ज्योत भी अपने नाम से जलाते है।
इसके अलावा नगर में स्थानीय शिव मंदिर प्रांगण में भी विद्या की आराध्या देवी माँ शारदा का भी मूर्ति स्थापना कर बड़े ही भक्ति भाव, श्रद्धा के साथ रोज सुबह शाम पूजा अर्चना विधि विधान के साथ किया जा रहा है।
इस ब्लाक में शारदीय नवरात्रि के साथ साथ तेलंगाना की संस्कृति झलक नजर आती है।
जो बतकम्मा के नाम से जाना जाता है।
सुहागन महिलाओं के लिए प्रसिद्ध पर्व है।
अश्विन मास कृष्ण पक्ष की अमावस्या से प्रारंभ होता है,जिसे तेलुगु भाषा मे” एंगीली फूला” अमावस्या से प्रारंभ होकर सद्दुला बतकम्मा तक नौ दिनों तक चलता है ।
जिसे सभी सुहागन महिलाएं बड़े भक्ति श्रध्दा के साथ रोज सुबह उठकर शारद ऋतु के मौसम में खिलने वाले तरह तरह रंग बिरंगे फूलो को एकत्रित करते है ,और माता गौरी के नाम से उपवास रहकर एकत्रित किये हुए फूलो को लेकर एक बड़ा प्लेट में उन रंगबिरंगे फूलो को गोलाकार में सजाते है,।
सबसे ऊपर एक गोपरम बनाकर उसमें हल्दी से माता गौरी स्वरुप को बनाकर स्थापना करते है।
सभी सुहागन महिलाएं शाम होते ही अपने ~अपने मोहल्ले व पारा में एकत्रित होकर तुलसी चबूतरा में बतकम्मा को रख कर उसके चारों ओर परिक्रमा करते हुए तुलुगु में माता पार्वती गौरी का गीतों का गायन ताली बजाते नाचते हुऐ गोल गोल चक्कर लगाते है।
इन दिनों बीच मे एक दिन” अर्रेम” के नाम से अर्थात उस दिन बतकम्मा नही खेला जाता है।
अंतिम दिन जिसे सद्दुला बतकम्मा के नाम से माता गौरी व नौ माताओ नाम से नौ प्रकार के प्रसाद बनाकर लाते है,जिसे सद्दुलु कहते है।
रोज की तरह बतकम्मा के गीतों का गायन करते हुए सभी महिलाएं नाच गाना करते है।
रात होते ही इन फूलों से बना बतकम्मा को बाजा गाजे के साथ पास के नदी तालाबो में विसर्जन कर सद्दुलु यानी, प्रसाद को वितरण किया जाता है।
सभी सुहागन महिलाएं नौ माताओ से अपने परिवार की सुख समृध्दि व अपने सुहागन की मनोकामना करती है।
इस बतकम्मा के नाम से कई कथाएं प्रचलित है।
प्राचीन काल के लोग कई तरह से अपना अपना मत व्यक्त किये है
यह काकतीय रजाओ के समय से चलता आ रहा है।
जिसमे में एक कथा यह भी है कि किसी राजा के दम्पति को 6 संतान हुए उसमे कोई भी संतान नही बचे अंतिम में एक सन्तान लड़की हुई जो जीवित बच गई।
वो राजा अपनी लड़की का नाम बतकम्मा रखा, तेलुगु में बतकु का अर्थ है जीना अम्मा का अर्थ है, माँ अर्थात बतकम्मा तब से इसी नाम से जानने लगे ।
उसी समय से यह पर्व पूरे नौ दिनों तक हर्षोउल्लास के साथ मनाते आ रहे है।
इस बतकम्मा को अविभाजित आंध्रप्रदेश से तेलंगाना राज्य अलग होते समय भी महिलाओं के द्वारा जब भी रास्ता रोखों आंदोलन किया जाता था , तब महिलाओं के द्वारा बतकम्मा बना कर चौक चौराहों में रखकर बतकम्मा खेलते हुए रास्ता रोखों आंदोलन को सफल बनाने में इनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है।
जब तेलंगाना राज्य का विभाजन हुआ, तब से वर्तमान सरकार के द्वारा विशेष महत्व दिया जा रहा है।
यह पर्व तेलंगाना राज्य का राज्यीय पर्व के रूप में मनाते आ रहे है।
इस पर्व को छत्तीसगढ़ के समूचे बीजापुर जिले में मनाते है।
क्योंकि यह तेलंगाना राज्य से सटे होने के कारण हमारी रोटी बेटी का रिश्ता बहुत पहले से ही बना हुआ है।
और यह संस्कृति आदान प्रदान होता रहता है।
यह पूरे नौ दिनों तक पूरा नगर व गांव गली मोहल्ला भक्तिमय वातावरण में डूबा रहता है।