नौकरियों और राजनीति में , आरक्षण और अनुसूचित जाति-जनजाति के ,अत्याचारों की निगरानी करना, जनजाति आयोग का काम है – अनसूया उइके ,,,,,,,,,,,,, दीपक मरकाम की रिपोर्ट,,,,,,,,
कोंडागांव :::::: छत्तीसगढ़ के महामहिम राज्यपाल महोदया सुश्री अनसुईया उईके एकल अभियान परिचय एवं सम्मान कार्यक्रम कोंडानार्र जिले के ऑडिटोरियम में रखा गया था जो कि उनका पहला कार्यक्रम है, जिसमे ग्राम – सल्फीपदर जिसे महामहिम राज्यपाल महोदया सुश्री अनसुईया उईके ने स्वंय गांव को गोद लिया जिसमें गांव के ग्रामीण जन जंगलों व अपने खेतों महिला – पुरूष एकल समूहों जंगलों कालीमिर्च की कर अपना जीवन – यापन सुचारू रूप से चला रही हैं जिसे देखने कल कोंडागांव आई हुई थीं ।
जिसमें महामहिम राज्यपाल ने छत्तीसगढ़ के अनुसूची क्षेत्र जैसे बस्तर संभाग व सरगुजा संभाग के निवासरत आदिवासियों के दशा का ज़िक्र किया जैसा कि सरगुजा व बस्तर संभाग संविधान के 5वीं अनुसूची क्षेत्र है, जो की जनजातियों के लिए बस्तर संभाग व सरगुजा संभाग संविधान के 5 वी अनुसूची क्षेत्र के अंतर्गत आते हैं जहाँ पर मूलभूत सुविधाएं नहीं हैं गरीब है, आर्थिक व सामाजिक रूप शैक्षणिक रूप से ऐसे लोगों को किस तरह से कल्याण किया जा सके इसके लिए सन् 1996 में पार्लियामेंट में पेसा कानून लागू को किया गया और पेसा कानून 5वीं अनुसूची क्षेत्र में किस तरह से हमारे अपने लोगों को सुरक्षा व संरक्षण मिल सके एवं उसमें पूरी तरह से ग्रामसभा को सर्वसम्मति व अधिकार दे दिये गए कि ग्रामसभा बहुमत के आधार पर जो निर्णय लेगी इसी आधार पर सरकार को मानना पड़ेगा ।
एक स्वतंत्रता गांव के लोगों को दे दी गई कि जो उनकी परंपरा , संस्कृति व रीति-रिवाज है जो पीढ़ियों से चली आ रही है एवं इस संचालन को ग्राम सभा पालन करते हुए एक प्रावधान में रखा गया ।
माइनिंग से लेकर जितनी भी विकास के कार्य हो परियोजना हो प्रोजेक्ट हो बिना ग्रामसभा के अनुमति बगैर कार्य नहीं कर सकती है, इसके बावजूद भी देखा गया है कि संविधान में अधिकारों का जिक्र तो है ।
जैसे अनुसूचित जनजाति आयोग, अनुसूचित जाति आयोग व पिछड़ा वर्ग जाति आयोग जिनको सिविक कोर्ट के अधिकार दिये गये हैं एवं जो भी नियुक्तियां होती है व राष्ट्रपति के द्वारा होती है एवं उनके जनजातीय आयोग में उपाध्यक्ष रहते हुए आदिवासी भाई के अन्याय अत्याचार व कोई भी दिक्कतें जैसी शिकायतें हैं या आर्थिक विकास, सामाजिक विकास कैसे हो जैसे नौकरियों में आरक्षण व राजनीति में आरक्षण या अनुसूचित जाति – जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम बनने के बावजूद शोषण तो नहीं हो रहे हैं व राज्य व केंद्र सरकार के द्वारा जो योजनाएं हैं उन तक पहुंच रही है या नहीं उन सभी की मॉनिटरिंग करना जनजाति आयोग का काम है ।
जानकारी के अभाव में अनुसूचित क्षेत्र के ग्रामवासी कोर्ट कचहरी के चक्करें काटते हुए उनकी पूरी उम्र गुजर जाती हैं या वर्षों तक केस चलती है व पैसे का भी काफी नुकसान होता है इसलिए संविधान में आदिवासियों के हित के लिए एक सुरक्षा कवच बनाया गया जिससे कैसे लोगों को न्याय दिलाएं ।
राज्यपाल महोदया ने देश के विभिन्न राज्यों में अपने कार्यकाल में भ्रमण किया है जैसे मध्यप्रदेश, उड़ीसा, झारखंड सहित पच्चीस राज्यों में जिसमें वहां के लोग अपने जमीन के लिए आज भी संघर्षरत हैं ।
उनकी जमीनों में बड़ी – बड़ी कंपनियां व बड़ी इमारतें बनाई गयी है , सरकार के द्वारा विस्थापित भी नही हुए हैं कहीं- कहीं कई लोगों को उनके जमीनों का मुआवजा भी मिल नहीं पाया है जिन जमीनों पर आदिवासियों के हक थे अब उनके पास खुद के रहने लायक एक इंच की जमीन भी नहीं है ।
राज्यपाल महोदया ने राऊरकेला का ज़िक्र करते हुए कहा कि वहां के लोग 1954 से जमीन की लड़ाई लड़ रहे हैं जिसमें वहां हजारों एकड़ जमीनें उद्योगपतियों को दे गई है वहां के जमीनों से अरबों- खरबों रूपए कि खनिज निकाले जा रहे हैं इसके बावजूद जिनकी जमीने थी वह अब भी झोपियों में रहने के लिए विवश हैं उनमें से अधिकतर लोगों को उनके जमीनों का अधिकार दिलाने के लिए कार्य किया जो असल में उन जमीनों के हकदार थे ।
संविधान ने सारे अधिकार दिये हैं जैसा कि वन अधिकार अधिनियम 2006 में बनायी गई जिसके तहत पट्टा वितरण किया गया लेकिन अनुसूचित क्षेत्रों के ग्रामीण वासियों को मालूम भी नहीं कि इनका डिमार्केशन हुआ है कि नहीं कि उनकी जमीन कहां से कहां तक है ऐसे प्रकरण अब भी लंबित हैं संयुक्त कम्युनिटी राइट के अधिकार पट्टे भी दिए गए व वनोपज का भी पूरा अधिकार ग्रामसभा को दिया गया है लेकिन आज ग्रामीण क्षेत्रों की वनोपजों पर सरकारीकरण हो गया है लेकिन पेसा कानून के तहत ग्रामीणों जो उनका मूलभूत अधिकार प्राप्त है कि ग्रामसभा ही निर्णय लेगी कि उसका क्रय विक्रय में उनके अनुसार नियम बने ।