*चिल्ड्रन इन इंडिया द्वारा 0 से 6 वर्ष के दिव्यांग बच्चों का समर्थ जिला दिव्यांग पुनर्वास केंद्र बीजापुर में किया जा रहा थेरेफी* ,,,,,
,,,,,,,तेजनारायण सिंह की रिपोर्ट,,,,,,
बीजापुर :::::: कलेक्टर श्री राजेंद्र कुमार कटारा के निर्देशानुसार, जिला पंचायत के मुख्य कार्यपालन अधिकारी श्री रवि कुमार साहू के मार्गदर्शन में एवं समाज कल्याण विभाग के उपसंचालक मनोज कुमार बंजारे के मार्गदर्शन एवं सहयोग से चिल्ड्रन इन इंडिया द्वारा 0 से 6 वर्ष के दिव्यांग बच्चों के दिव्यांगता में सुधार हेतु लगातार प्रयास किया जा रहा है ।
चिल्ड्रन इन इंडिया द्वारा दिनांक 23,24 एवं 30 जून 2022 तथा 01 जुलाई 2022 को जिले के चारों ब्लॉक में दिव्यांग शिविर आयोजन किया गया था । इस शिविर में 0 से 6 वर्ष के कुल 40 बच्चों को चिन्हांकित किया गया । इन 40 बच्चों का 10-10 का एक बैच बनाकर इनके दिव्यांगता में सुधार हेतु जिले में संचालित समर्थ जिला दिव्यांग पुनर्वास केंद्र बीजापुर में फिजियो थेरेपिस्ट अपर्णा देवांगनऔर स्पीच थेरेपिस्ट पूनम साहू द्वारा थेरेफी किया जा रहा है । एवं दिनांक 06 फरवरी से 20 फरवरी 2023 तक कुल 15 दिनों के लिए बीजापुर जिले के चारों ब्लॉक से 7 बच्चे उपस्थित हुए हैं जिनका थेरेफी सत्र अभी चल रहा है । इन दिव्यांग बच्चों के साथ उनके महिला पालक के रहने ,खाने-पीने की व्यवस्था समाज कल्याण विभाग द्वारा की गई है । इस थेरेपी सत्र के दौरान 4 दिव्यांग बच्चे गणेश,विवान, निरंजन,एवं संजय को चलने में परेशानी होती है । चूंकि उनका पैर क्लब्फूट है एवं लिंब शॉर्टनिंग है , जिसका डायग्नोस DDRC के फियोथेरेपिस्ट अपर्णा देवांगन द्वारा किया गया है ।उक्त बच्चों के पैर में सुधार हेतु करेक्टिव – शू का सुझाव दिया गया । एवं इन 4 बच्चों को फिजीयोथेरेपिस्ट द्वारा DDRC से रेफेर किया गया है । बाकी 3 बच्चों का जिला दिव्यांग पुनर्वास केंद्र बीजापुर में थेरेपी सत्र जारी है । बीजापुर जिले में संचालित एनजीओ चिल्ड्रन इन इंडिया के रीजनल प्रोग्राम कोऑर्डिनेटर के जी प्रवीण द्वारा Early Detection and Early Intervention अर्थात जल्दी पहचान और जल्दी हस्तक्षेप के तहत दिव्यांग बच्चों के दिव्यांगता में सुधार हेतु लगातार प्रयास किया जा रहा है। ताकि समय रहते उनके दिव्यांगता में सुधार कर उन्हें बाकी नार्मल बच्चों की तरह आंगनबाड़ी या स्कूल में दाखिल कर उन बच्चों को समाज की मुख्य धारा से जोड़ा जा सके । इससे आंगनबाड़ी और स्कूल में ड्रॉपआउट बच्चों की संख्या कम होगी ।