14 सीट पर सिमटे बीजेपी का ,छत्तीसगढ़ में फिर सरकार बनाने तगड़ा प्लान… आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत, भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी. नड्डा का यहां छत्तीसगढ़ आकर कार्यकर्ता सम्मेलन को संबोधित करना ,और चलते सम्मेलन के बीच ही डी. पुरंदेश्वरी को हटाकर ओम माथुर को भाजपा छत्तीसगढ़ प्रदेश प्रभारी बनाना – गंभीर रणनीति का है हिस्सा……… दीपक मरकाम की रिपोर्ट,,,,,,

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14 सीट पर सिमटे बीजेपी का ,छत्तीसगढ़ में फिर सरकार बनाने तगड़ा प्लान… आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत, भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी. नड्डा का यहां छत्तीसगढ़ आकर कार्यकर्ता सम्मेलन को संबोधित करना ,और चलते सम्मेलन के बीच ही डी. पुरंदेश्वरी को हटाकर ओम माथुर को भाजपा छत्तीसगढ़ प्रदेश प्रभारी बनाना – गंभीर रणनीति का है हिस्सा……… दीपक मरकाम की रिपोर्ट,,,,,,

रायपुर ::::::::: एक ही हफ्ते के भीतर आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत का छत्तीसगढ़ आना, उनके तूरंत बाद भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी. नड्डा का यहां आकर कार्यकर्ता सम्मेलन को संबोधित करना और चलते सम्मेलन के बीच ही ओम माथुर के भाजपा छत्तीसगढ़ प्रदेश प्रभारी बनाए जाने की ख़बर आना क्या यह संयोग मात्र था, शायद नहीं!

भागवत व नड्डा के इस तरह के बड़े कार्यक्रम अचानक नहीं बनते, बल्कि पूर्व निर्धारित होते हैं। फिर किस स्टेट का कौन भाजपा प्रभारी होगा यह तो राष्ट्रीय अध्यक्ष नड्डा व उनके सहयोगी वरिष्ठ नेता ही तय करते हैं। कोई ऐसा तो है नहीं कि रायपुर पहुंचने के बाद नड्डा ने इस पर बड़ा फैसला ले लिया। यह भी पहले से ही निर्धारित था।

यानी भागवत व नड्डा के आने से लेकर प्रदेश प्रभारी बदलने की बात पहले से ही तय थी। सवाल यह उठता है कि इस समय सबसे ज़्यादा राजनीतिक प्रयोग छत्तीसगढ़ में ही क्यों? जिस छत्तीसगढ़ में लगातार 15 साल भाजपा की सरकार रही हो और वहां भाजपा विधायकों की संख्या 14 में आकर सिमट जाए तो राष्ट्रीय नेताओं के लिए इससे बड़ा तकलीफदेह क्या होगा।

नड्डा भले ही कहते रहें कि छत्तीसगढ़ सोनिया गांधी व राहुल गांधी के लिए एटीएम होकर रह गया है, लेकिन संसाधनों से भरपूर इस प्रदेश की महत्ता क्या है भला उनसे बेहतर कौन जानता होगा? आख़िर नड्डा जी खुद भी तो क़रीब 5 साल छत्तीसगढ़ के प्रभारी रहे थे।

पार्टी के लोग यही मानते हैं कि जब तक नड्डा जी यहां के प्रभारी थे बड़े लोगों के ऊपर उनकी जबरदस्त लगाम थी लेकिन यहां से उनका प्रभार हटते ही धीरे-धीरे सारा परिदृश्य बदलते चला गया।

भाजपा के सारे दिग्गज जान रहे हैं कि मध्यप्रदेश व राजस्थान की तूलना में छत्तीसगढ़ के हालात कठिन हैं।

यहां वापसी के लिए कई तरह के यत्न करने होंगे। हफ्ते-दस दिन के भीतर छत्तीसगढ़ प्रदेश भाजपा अध्यक्ष व नेता प्रतिपक्ष का बदल जाना एक ही समय पर भागवत व नड्डा का प्रवास और नये प्रभारी की घोषणा ये सब समझने के लिए काफ़ी हैं कि छत्तीसगढ़ में 15 साल तक राज कर चुकी पार्टी अभी से पूरी तरह चुनावी मोड में आ चुकी है।

आगे और भी चौंकाने वाले राजनीतिक घटनाक्रम सामने आ सकते हैं। रायपुर में भागवत व नड्डा के बीच हुई हालिया लंबी बातचीत काफ़ी कुछ संकेत देती नज़र आ रही है।

***नड्डा ने जिनको याद किया**

भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद जे.पी. नड्डा पहली बार छत्तीसगढ़ प्रवास पर आए। रायपुर में उन्होंने कार्यकर्ता सम्मेलन को संबोधित किया। नड्डा के संबोधन में ख़ास बात यह नज़र आई कि उन्होंने बिरसा मुंडा का स्मरण किया।

माता कौशल्या को याद किया और त्यागमूर्ति ठाकुर प्यारेलाल सिंह तथा बाबू छोटेलाल श्रीवास्ताव को नमन किया।

भाजपा के किसी राष्ट्रीय नेता ने विशाल मंच पर शायद पहली बार माता कौशल्या के अलावा ठाकुर प्यारेलाल सिंह व छोटेलाल श्रीवास्तव जैसे नाम लिए। इन नामों से भाजपा ने बहुत कुछ साधने की कोशिश की।

कांग्रेस की सरकार बनने के बाद चंदखुरी में कौशल्या माता के मंदिर का जीर्णोद्धार एवं सौंदर्यीकरण हुआ। इसके बाद से ही छत्तीसगढ़ राम का ननिहाल होने की व्यापक चर्चा होने लगी। ऐसे में नड्डा को माता कौशल्या का नाम लेना ज़रूरी लगा।

इसमें कोई दो मत नहीं कि छत्तीसगढ़ को पृथक राज्य बनाने में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी की अहम् भूमिका रही थी।

लेकिन यह भी उतना ही सच है कि पृथक छत्तीसगढ़ राज्य का सपना सबसे पहले ठाकुर प्यारेलाल सिंह एवं डॉ. खूबचंद बघेल ने मिलकर देखा था।

ऐसे में नड्डा ने ठाकुर प्यारेलाल सिंह का नाम लेकर छत्तीसगढ़ की जन भावनाओं का पूरा ध्यान रखा। क्रांतिकारी बिरसा मूंडा आदिवासी समुदाय से थे। मंच पर बिरसा मूंडा का स्मरण करना यानी आदिवासी समुदाय को सम्मान देना है।

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