*क्रांतिवीर सुकदेव (पातर) हल्बा का स्वतंत्रता संग्राम में योगदान*
दुर्गूकोदल
उत्तर- बस्तर काँकेर जिले के इतिहास में स्वर्णाक्षरों से लिखने योग्य गाँधीवादी सत्याग्रहियों में क्रांतिकारी सुकदेव (पातर) हल्बा जी की कुर्बानी को देश हमेशा याद रखेगा। जब पूरा देश अंग्रेजों की गुलामी के साये में था तब अत्यंत दुरस्थ अंचल में भी स्वतंत्रता की बिगुल बजने लगी थी। लंबे अरसे से आजादी की लड़ाई लड़ी जा रही थी। देश में महात्मा गाँधी जी के अहिंसक आँदोलन से जुड़कर देश प्रेमियों ने आजादी की माँग का शंखनाद किया था, तब उत्तर- बस्तर के बियाबान जंगलों में भी स्वतंत्रता की अलख जगने लगी थी। सन् 1920 से ही इस क्षेत्र में अंग्रेजों के विरूध्द सत्याग्रह,जुलूस,प्रदर्शन,चरखा झंडे का प्रचार आदि शुरू हो चुके थे। इन्दरू केंवट, सुखदेव उर्फ पातर हल्बा तथा कंगलू कुम्हार ने महात्मा गाँधी की जय के नारों के साथ क्षेत्र में एक जागरूकता पैदा कर दी थी। फिर भी एक समय के बाद ऐसा वक्त आया। कि “चमन पे वक्त पड़ा, तो खून हमने दिया- बहार आई, तो कहते हैं तेरा काम नहीं।’ कुछ ऐसा ही चरितार्थ सामने आई। पुलिस के सामने सीना तानकर नारे लगाने वाले आजादी के ये दीवाने मौत से भी नहीं डरते थे, फिर जेल कचहरी की बात ही क्या?
बावजूद आज तक इन्हें अँधेरी काल- कोठरी में रख दिया गया। इनके सहयोगी शहीद इन्दरू केंवट जी और कंगलू कुम्हार जी को तो स्वतंत्रता संग्राम सेनानी घोषित कर दिया गया, किंतु स्व. सुकदेव पातर हल्बा जी की अमर कहानी को भूला दिया गया। जबकि इनके द्वारा देश की स्वतंत्रता के लिए किये गये संघर्ष की कहानी किसी से छिपी नहीं है।
स्व. सुकदेव उर्फ पातर हल्बा जी स्व. रघुनाथ हल्बा जी के पुत्र थे। इनका जन्म ग्राम- राऊरवाही में 1892 के आस-पास हुआ था। वे स्वतंत्रता संग्राम सेनानी इन्दरू केंवट के साथी थे। 1932 से गाँधीजी के अनुयायी हो गये थे। सुकदेव के पिता रघुनाथ, राऊरवाही से ग्राम- भेलवापानी में आकर बस गये थे, यहीं से इनका राजनीति के प्रति रूझान पैदा हुआ। अपने साथी इन्दरू केंवट, कंगलू कुम्हार के साथ मिलकर देश को आजाद करवाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की थी।
सुकदेव पातर की दो पत्नियाँ थीं और दोनों से एक- एक संतानें हैं। पहली पत्नी लखमीबाई से एक पुत्री इतवारीन बाई, जिसकी शादी ग्राम- चेमल में हुई थी। दूसरी पत्नी थनवारीन बाई थी, जिसका पुत्र श्री रामानंद पिता सुकदेव पातर है। स्व. सुकदेव पातर हल्बा स्वतंत्रता आँदोलन में अग्रणी भूमिका में थे। एक बार ग्राम- राऊरवाही के निकट खण्डी नदी से लगे पातर बगीचा में पहली बार बैठक हुई थी जिसमें लगभग एक- डेढ़ हजार लोग उपस्थित हुए थे। मानपुर, राजनाँदगाँव जिला से लेकर आस-पास के लोग उपस्थित हुए थे। वे अपना भोजन साथ लेकर आये थे। लोग अपने साथ चरखायुक्त तिरंगा झण्डा लेकर आये थे। झण्डे को पातर बगीचा स्थित आम के वृक्ष के नीचे सभी लोग रखे एवं उसकी पूजा की। उस आम के वृक्ष को आज भी लोग झण्डा आमा के नाम से जानते हैं। इस बैठक में सुकदेव पातर और कंगलू कुम्हार तथा इन्दरू केंवट ने भाषण दिया था। एक बार कोड़ेकुर्से के बाजार में भी जुलूस निकाले थे। सुकदेव पातर और कंगलू कुम्हार को पुलिस ने गिरफ्तार कर जेल भेजा था।
सुकदेव पातर, कंगलू कुम्हार, रंजन हल्बा, विनायकपुर का भूरका मांझी मिलकर स्वराजी झण्डा लेकर गाँव- गाँव में घुमते थे। ग्राम- चेमल से स्वराज आँदोलन की शुरूआत हुई थी। तब ये निम्नानुसार गीत गाते थे-
1. झण्डा ऊँचा रहे हमारा,विजयी विश्व तिरंगा प्यारा…
2. भारत देश आजाद हो- आजाद हो।
3. छिन में गोली खईले,
पर हित जान जईले,
नाम तेरा अमर रहिबो गाँधी बाबा जी
अपने विजय लगईले,
लडकर विजय लगईले,
नारीओं को जेल भेजईले,
चक्की में पेरईले, कोल्हू में पेरईले
हाथ में हथकड़ी लगवाये बाबा गाँधीजी।
4. जरे अंगरेजवा के रिंगी चिंगी कपड़ा, गाँधीजी बताईसे,
चरखा चलाई दिये,राहंटा कटई दिये,
खादी कपड़ा पहिनाये गाँधी बाबा जी।
झण्डा आमा पातर बगीचा में है यहाँ कभी- कभी स्वराज वाले बैठक करते थे। पातर हल्बा, कंगलू कुम्हार और इन्दरू केंवट पहले दुर्ग गये और बाद में धमतरी गये वहीं से उनको चरखा वाला झण्डा मिला। सुकदेव पातर की मृत्यु 1962 में हुई।
धरमूराम पिता जयराम जाति हल्बा 79 वर्ष ने अपने बयान में बताया है कि मैं ग्राम- सुरूंगदोह में इन्दरू केंवट के घर नौकरी करता था। सुकदेव पातर, कंगलू कुम्हार और इन्दरू केंवट को पुलिस गिरफ्तार करने के लिए ढुँढती थी। एक बार इन्दरू केंवट की पत्नी और पुत्री मिलकर पुलिस वालों को गाली- गलौच कर भगा दिये उस वक्त मैं वहीं था। एक बार पुलिस सुरूंगदोह के घर से इन्दरू केंवट को गिरफ्तार किये और काँकेर जेल ले गये। सजा नहीं हुई, रिहा किया गया। सुकदेव पातर, कंगलू कुम्हार अपनी जान की परवाह किये बगैर स्वराजी आँदोलन चलाते थे। गाँव- गाँव पैदल जाकर ग्रामीणों को समझाते थे और जुलूस निकालते थे।
अंग्रेज भागे, उस दिन सुकदेव, कंगलू और इन्दरू अपने- अपने गाँव में रहकर लोगों को इकठ्ठा किये। जंगल से सागौन वृक्ष काटकर लाये और झण्डा बनाकर पूजापाठ करके त्यौहार के रूप में स्वतंत्रता दिवस मनाया गया। ग्राम- सुरूंगदोह और गोटुलमुंडा में आज भी 1947 का गाड़ा खम्भा मौजूद है। ये लोग झण्डा लेकर गाँव- गाँव में जाते थे और लोगों को बताते थे कि अंग्रेजों को भगाना है और कांग्रेस को लाना है।
सन् 1941-42 में सात आठ लोग इन्दरू केंवट,सुकदेव पातर,कंगलू कुम्हार,ठंगू पातर,रोहिदास गोंड,ढोंगिया ठाकुर आदि अमोड़ी गाँव में आये और अपने साथ लाये झण्डों को गाँव के देवगुड़ी के खम्भे में गाड़ दिये। गाँववालों को इकठ्ठा किये, एक बकरा लाये,देवगुड़ी में पूजा किये और बकरे की बलि चढ़ाये। भारत माता की जय,महात्मा गाँधी की जय,नारा लगाये और भाषण दिये। दोपहर भोजन के बाद शाम को चले गये। इस तरह इन लोगों का आजादी की लड़ाई में महत्वपूर्ण योगदान था। स्व.सुकदेव पातर के संबंध में और जानकारी प्राप्त करने के लिए पुलिस थाना दुर्गूकोंदल एवं भानुप्रतापपुर में संधारित व्ही.सी.एन.बी (विलेज क्राईम नोट बुक) का अवलोकन किया गया। ग्राम- चेमल के व्ही. सी. एन. बी में दिनांक 7.12.1941 में लिखा गया है कि इस मौजे में आजकल स्वराजी हरकत की गड़बड़ है। इन्दरू केंवट के बहकावे में अतराफ के लोग स्वराज में शामिल हो रहे हैं। मानपुर से (राजनाँदगाँव जिला) स्वराजी झण्डियाँ खरीद लाये हैं और अपने- अपने घरों में रखे हैं। दिनांक 22.3.42 को लिखा गया है कि आज खास खण्डीघाट में कंगलू कुम्हार ने एक बड़ा बैठक झण्डी वालों का किया इस बैठक में करीब 200-300 आदमी जमा हुए। 30-32 झण्डा वाले भी थे,इस बैठक के मुखिया 4 थे। कंगलू कुम्हार,सुकदेव हल्बा भेलवापानी,इन्दरू केंवट कोड़ेकुर्से,सहंगू गोंड पालवी। सुकदेव पातर ने अपने भाषण में कहा है कि लड़ाई के काम में चंदा,बरार या किसी तरह का मदद नहीं देंगे। इसकी इत्तला मजिस्ट्रेट को दे दी गई।
दिनांक 5.04.1942 को भानुप्रतापपुर बाजार में जब भानुप्रतापपुर डाक बंगले में जु.साहब बहादुर का मुकाम था। स्वराजी झण्डे वाले जुलूस के साथ आये इसमें मुखिया सुकदेव पातर हल्बा,कंगलू कुम्हार एवं दारसू गोंड हेटारकसा थे। जु.साहब ने उन्हें समझाया मगर ये कोई ध्यान नहीं दिये और झण्डा ऊँचा करके चले गये। दिनांक 11.4.1942 को लिखा गया है कि खण्डीघाट में मीटिंग तारीख 25.3.1942 को हुआ था और कंगलू एवं सुकदेव ने इस बैठक में लड़ाई में कोई मदद या चंदा वगैरह न देने की नाजायज बात कही थी इसकी रिपोर्ट होने पर जु. साहब बहादुर ने इन पर रूल नंबर 38 भारत रक्षा कानून के अनुसार मामला चलाने की मंजूरी दी है। हुक्म मुताबिक जाँच कर रिपोर्ट जु.साहब पुलिस को भेजी गई और उनके हुक्म से मुकदमा कायम कर चालान की कार्यवाही कंगलू एवं सुकदेव हल्बा के खिलाफ की गई।
दिनांक 17.4.1942 को लिखा गया है कि दोनों मुलजिमों को 25-25 रूपये जुर्माने की सजा हुई। ग्राम- भेलवापानी के व्ही. सी. एन. बी में दिनांक 25.4.1942 को लिखा गया है कि सुकदेव हल्बा एवं कंगलू कुम्हार साकिन चेमल को अदालत जु.जा.काँकेर से 25-25 रूपये जुर्माने की सजा खादिर हुआ। अदम- अदायगी जुर्माने के 4 माह सख्त कैद (17.4.43)।
स्वतंत्रता संग्राम सेनानी स्व. इन्दरू केंवट के हिस्ट्री शीट में लिखा है कि सुकदेव पातर, इन्दरू केंवट, कंगलू कुम्हार एवं उनके साथियों ने दिनांक 18.3.1942 को कोड़ेकुर्से के बाजार में स्वराजी झण्डी का जुलूस निकालने का इरादा कर लिया था। इसकी सूचना मिलने पर पुलिस गार्ड भेजी गई थी तहसीलदार साहब भी थे। सुकदेव पातर एवं रंजन हल्बा झण्डी लेकर आये हुए थे मगर पुलिस का इंतजाम देखकर जुलूस निकालने की हिम्मत नहीं कर सके। दिनांक 20-3-42 को सुकदेव पातर एवं रंजन हल्बा ने 10 आदमियों को लेकर अचानक कोड़ेकुर्से के बाजार में जुलूस निकाला। इससे इनको हिम्मत हुई तो स्वराजी झण्डी का जुलूस बरहेली और तरहुल के बाजार में भी निकाला गया।
दिनांक 28-3-42 को मौजा चेमल खण्डीघाट में एक जबरदस्त बैठक हुआ जिसमें स्वराजी झण्डी की पूजा की गई। जुलूस निकाला गया। इस बैठक में सुकदेव पातर,इन्दरू एवं कंगलू कुम्हार ने लड़ाई में मदद न पहुँचाने और सरकार का कोई काम नहीं करने का नाजायज लैक्चर दिया गया था और इस बैठक में प्रस्ताव पारित किया गया था कि भानुप्रतापपुर के बाजार में स्वराजी झण्डी का जुलूस निकाला जाय। दिनांक 5.4.42 को भानुप्रतापपुर के बाजार में दो तीन सौ आदमियों का जुलूस स्वराजी झण्डी के लिए निकाला गया। उस दिन पोलिटिकल एजेन्ट साहब बहादुर का भानुप्रतापपुर के डाक बंगले में मुकाम था। महात्मा गाँधी की जय,भारत माता की जय का नारा लगाते हुए पहुँच गये। पोलिटिकल एजेन्ट साहब से बहुत कहासुनी हुई, ये लोग नहीं माने और झण्डा को ऊँचा कर चल दिये।
इस इलाके में जुलूस आदि को बन्द करने के गरज से दरबार आर्डर नं. 7 ता. 7.4.42 जारी किया गया और जुलूस, बैठक आदि पर प्रतिबंध लगाया गया। दिनांक 28.5.42 को ग्राम भेलवापानी में सुकदेव पातर हल्बा के घर में दरबार आर्डर के खिलाफ एक बैठक रात के वक्त कर रहे थे कि मुखबिर की सूचना के आधार पर पुलिस ने दबिश दी तब सुकदेव पातर,कंगलू कुम्हार और रंजन हल्बा गिरफ्तार किये गये। इन्दरू केंवट पुलिस को चकमा देकर भाग गया। सुकदेव पातर,कंगलू कुम्हार पर डि.आई.रूल्स 38 (भारत रक्षा कानून की धारा 38) के तहत चालान पेश किया गया था। जिसमें अदालत जु.जा.काँकेर के आदेश दिनांक 17.4.43 को सुकदेव पातर और कंगलू कुम्हार को 25-25 रूपये जुर्माने की सजा हुई अदम अदाय जुर्माने के 4 माह की सख्त सजा हुई थी। संपादक जे.आर.वालर्यानी प्राध्यापक संयोजक इतिहास विभाग द्वारा प्रकाशित छत्तीसगढ़ में आदिवासी आँदोलन नामक शोध पत्रिका में शोधकर्ता प्रदीप जैन सहायक प्राध्यापक (इतिहास) भानुप्रतापदेव शास.स्नातकोत्तर महाविद्यालय काँकेर ने अपने शोध पत्र में लिखा है कि भानुप्रतापपुर तहसील में स्थित भेलवापानी निवासी पातर हल्बा ने आदिवासियों में अंग्रेजों के विरूध्द शंखनाद किया था। 1920 ई. में कंडेल आँदोलन के सिलसिले में महात्मा गाँधी धमतरी आये थे। पातर हल्बा अपने दो साथी इन्दरू केंवट और कंगलू कुम्हार के साथ पैदल चलकर महात्मा गाँधी से मिला था। सन् 1933 ई. में पातर हल्बा,इन्दरू केंवट और कंगलू कुम्हार महात्मा गाँधी से दुर्ग में मिले थे।
सन् 1944-45 में पातर हल्बा,इन्दरू केंवट और कंगलू कुम्हार के नेतृत्व में काँकेर रियासत के दीवान टी. महापात्र द्वारा भू- राजस्व (लगान) में वृध्दि किये जाने के विरोध में आँदोलन चलाया गया। पातर हल्बा और उनके साथियों के कहने पर आदिवासियों ने बढे हुए भू- राजस्व को पटाने से इंकार कर दिया। ब्रिटिश प्रशासन ने पातर हल्बा, इन्दरू केंवट और कंगलू कुम्हार व 429 आदिवासियों पर राजद्रोह का मुकदमा चलवाया। भू-राजस्व विरोधी आँदोलन की भयानकता को देखते हुए रियासत प्रमुख महाराधिराज भानुप्रतापदेव ने आँदोलनकारियों पर चल रहे राजद्रोह के मुकदमों को वापस ले लिया। उक्त बातें शोधकर्ता प्रदीप जैन ने ‘आजादी की लड़ाई का सच्चा सैनिक था पातर हल्बा’ नामक शीर्षक से प्रकाशित किया है। लेखक जे. आर. वालर्यानी द्वारा लिखित ‘क्रांतिवीर इन्दरू केंवट (काँकेर रियासत का गाँधी)’ नामक पुस्तक में लिखा है कि इन्दरू केंवट के साथी सुकदेव पातर के भाषण से प्रभावित होकर भानुप्रतापपुर के लोगों ने स्वदेशी वस्तुओं को अपनाना प्रारंभ किया। सन् 1923 ई.में कांग्रेस द्वारा झण्डा सत्याग्रह की घोषणा की गई। सुकदेव पातर,इन्दरू केंवट और कंगलू कुम्हार ने सैकड़ों की संख्या में सत्याग्रह सैनिक तैयार किये।
दिनांक 22-11-1933 ई. में जब महात्मा गाँधी दुर्ग आये उस दिन सुकदेव पातर,इन्दरू केंवट और कंगलू कुम्हार महात्मा गाँधी से मिले थे और हरिजन उध्दार कोष में चंदा भी दिया था। उपरोक्त विवेचना एवं दस्तावेजों के अवलोकन तथा जानकार लोगों के बयान से यह सिध्द होता है कि स्व. सुकदेव उर्फ पातर हल्बा, इन्दरू केंवट और कंगलू कुम्हार स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, आजादी के सच्चे सिपाही थे, स्वतंत्रता समर के अमर शहीद थे। दुर्भाग्य की बात है कि इन्हें स्वतंत्रता संग्राम सेनानी का दर्जा आज तक नहीं मिल पाया। क्रांतिवीर सुकदेव पातर के अन्य दो साथियों को स्वतंत्रता संग्राम सेनानी का दर्जा दिया गया, मगर सुकदेव पातर हल्बा निवासी ग्राम भेलवापानी को भूला दिया गया है।
‘इस सुदूर वनांचल में रहकर इन आजादी के दीवानों ने देश को आजाद करवाने में अपनी जान की परवाह किये बगैर महत्वपूर्ण योगदान दिया है।’
*क्रांतिवीर स्व.सुकदेव पातर हल्बा जी को स्वतंत्रता संग्राम सेनानी घोषित जाए।*
साभार ‘नैवेध’
*मुकेश बघेल*
शिक्षक एवं आदिम जनजाति सामाजिक शोधकर्ता
विकासखंड- दुर्गूकोंदल (कांकेर)